ऊर्जा के प्रति जागरूकता
ऐसे समय में जब दुनिया आसन्न ऊर्जा संकट की ओर बढ़ रहा है, तब विभिन्न तरह की ऊर्जा उत्पादन, उसके प्रचार प्रसार और उसकी खपत के बारे में सार्वजनिक समझ को बढ़ावा देना और उसके प्रति जागरूकता लाना महत्वपूर्ण हो गया है। देश की बिजली खपत एक नियम गति से बढ़ रही है, जबकि संसाधन दिन-प्रतिदिन दुर्लभ होते जा रहे हैं। इस संकट की स्थिति में यह जरूरी हो जाता है कि उपभोक्ताओं को बिजली के महत्व और इसके विवेकपूर्ण इस्तेमाल के बारे में शिक्षित किया जाए और उन आवश्यक कदमों के बारे में बताया जाए, जिसे उपभोक्ता अपनाकर अपनी बिजली की मांग को कम कर सकते है और साथ ही अपने बढ़े हुए बिजली के बिलों को भी कम कर सकते हैं।
धरती पर परंपरागत बिजली के स्रोत सीमित मात्रा में ही उपलब्ध होने की वजह से यह महत्वपूर्ण है कि हम अपनी मौजूदा आपूर्ति को संरक्षित करें या नवीनीकृत स्रोतों का इस्तेमाल करें, ताकि हमारे प्राकृतिक संसाधन भावी पीढ़ियों के लिए भी उपलब्ध हो सके। ऊर्जा संरक्षण भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि परंपरागत स्रोतों की खपत से पर्यावरण पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। खासतौर पर जीवाश्म ईंधन के हमारे इस्तेमाल से वायु और जल प्रदूशण बढ़ता है। उदाहरण के तौर पर जब तेल, कोयला या गैस को बिजली संयंत्रों, हीटिंग प्रणालियों और कार के इंजन्स में इस्तेमाल होता है, तब कार्बन डाई ऑक्साइड पैदा होती है। कार्बन डाई ऑक्साइड वातावरण में एक पारदर्शी परत बन जाता है, जिसकी वजह से पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिंग या ‘ग्रीन हाउस’ का प्रभाव पड़ता है। इस वार्मिंग की वजह से जलवायु के रूख पर भी व्यापक असर पड़ने की आशंका होती है। संभावित खतरों में मानव स्वास्थ्य को जोखिम, पर्यावरणीय प्रभाव, जैसे समुद्र तल बढ़ने लगता है, जिससे तटीय क्षेत्रों को नुकसान होता है और पौधों के विकास के प्रारूप में व्यापक बदलाव आता है और इसके परिणामस्वरूप कुछ पौधे और जीव-जंतुओं की प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं।
ऊर्जा संरक्षण क्यों है जरूरी
देश में बढ़ रही बिजली की मांग को पूरा करने के लिए भारत को हर साल बिजली उत्पादन में 12000 मेगावाट बढ़ाना होगा। बिजली की मांग विषेश तौर पर औद्योगिक क्षेत्रों में बढ़ रही है, जो कुल बिजली खपत में 56 फीसदी हिस्सेदारी रखते हैं। इसके लिए हर साल भारी-भरकम निवेश यानी करीब 50,000 करोड़ रुपये सालाना की जरूरत होगी! औद्योगिक और वाणिज्यिक क्षेत्र की मांग का दक्षता से प्रबंधन किया जाए और साथ ही ऊर्जा संरक्षण में नवोन्मेशी तरीकों का इस्तेमाल किया जाए तो बिजली खपत को 25 फीसदी कम किया जा सकता है यानी 30,000 मेगावाट बिजली बचाई जा सकती है।
भारत में विशत्व की 15 फीसदी आबादी रहती है लेकिन यहां विशत्व के कुल तेल भंडार का महज 2 फीसदी उपलब्ध है और इसलिए अब समय आ गया है कि औद्योगिक एवं वाणिज्यिक संस्थानों को नवीनतम तकनीक और उपकरण अपनाकर ऊर्जा संरक्षण पर ध्यान देना होगा। पिछले 10 से 15 साल के दौरान देश में बिजली लागत कई गुना बढ़ी है, जिससे उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता पर भी प्रभाव पड़ा है। ऐसे में ऊर्जा संरक्षण बहुत महत्वपूर्ण हो गया है।
ऊर्जा संरक्षण या ऊर्जा बचाना अब राष्ट्रीय मुद्दा है। भारतीय उद्योगों को प्रतिस्पर्धी बनाए रखने में ऊर्जा का दक्षता से प्रबंधन करना महत्वपूर्ण है। ऊर्जा दक्षता से प्रतिस्पर्धा में लाभ होगा और अंतरराष्ट्रीय बाजार में हमारी प्रतिभागिता बढ़ेगी। ऊर्जा संरक्षण के लिए सिर्फ दक्ष उपकरणों, एप्लायंसेज और गैजेट्स ही जरूरी नहीं होते हैं बल्कि ऊर्जा और विषेशतौर पर बिजली के प्रति लोगों का रवैया और उनकी आदतें सबसे महत्वपूर्ण होती हैं।